Friday, February 19, 2010

उनके लिए


दो
जवां दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं

क्यों हुआ मई दीवाना बेड़ियाँ समझती हैं

कल तलक तो ये लगता था की ये दुनिया हमारी है

अब अपने ही घर में किसी दूसरे के घर के हम हैं|

कहते हैं, कि वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन, उसे ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा है, पर वो रास्ते में कहाँ गुम हुई, मुझे इल्म तक ना हुआ, बस ये एक प्यारा सा एहसास बाकी है, की वो कभी तो मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चली थी, तकलीफ़ वहाँ नहीं थी, दोनों ही जानते थे कि मोहब्बत है और वे एक दूसरे को भूलने की कोशिश करें और ना इस बात का ग़म था कि दोनों दिल ही दिल में एक दूसरे को चाहें और इज़हार ना कर पाएँ, लेकिन दर्द था इस बात का की वो जानती थी कि उसके बग़ैर मेरी ज़िंदगी की कोई अहमियत नही, फिर भी मुझे छोड़कर चली गयी|

कोई ये कैसे बताए की वो तन्हा क्यों है

वो जो अपना था वही और किसी का क्यों है

यही दुनिया है तो ऐसी ये दुनिया क्यों है

यही होता है तो आख़िर यही होता क्यों है|

तुमसे मिलना, तुमसे बिछड़ना इन्ही लम्हों में मैने अपनी पूरी ज़िंदगी जी ली, मैं आज भी उन जगहों में जाकर तुम्हें महसूस करते हुए ये सोचता हूँ, कि ये सब तुम्ही से रोशन थे क्यों कि तुम्हारे जाने के बाद हरियाली के यहाँ कितने ही मौसम आए लेकिन ये कभी ना संवर सकी|

तुम्हारे बगैर और वो सब कुछ ठीक है

मगर यूँ ही

ये चलता-फिरता शहर अजनबी सा लगता है|

किस से कहें और क्या कहें, ये दर्द के जॅंगल भी तो मेरे ही बनाए हुए हैं, तुमसे अलग होकर जैसे मैं अपनी ज़िंदगी को समझाने की कोशिश करता, लेकिन यादों की हल्की सी पूर्वाई चलती और मैं देर तक उनके साथ उड़ता चला जाता, उन्ही लम्हों के जंगलों में, जहाँ मेरे ही दर्द की सिसकियाँ सुनाई देती हैं, और कभी इन वीरान जंगलों में खुशियों की घटा भी छाती तो बिना बरसे ही उड़कर चली जाती और मैं इस इंतज़ार में रहता कि तुम फिर वापस आओगी, मैं अक्सर उन राहों से गुज़रता हूँ जहाँ हम कभी साथ मिलकर चले थे, उन उजाड़ टीलों पर घंटो बैठना, जहाँ तुम्हारी महक आज भी बसी हुई है, मैं जनता हूँ की तुम नहीं हो, कहीं नहीं हो, फिर भी ये लगता है कि तुम आज भी यहीं कहीं हो| इन आवार्गियों में भटकना, इन तन्हाइयों के जंगलों को रात भर नापना हमेशा एक सुकून देता है कि इन्ही लम्हों में तुम बसी हो|

महक रही हैं फ़िज़ाएं एहसास से तुम्हारे

जैसे कोई ख़ुशबू हो तुम्हारे बारे में सोचते रहना

रात का धूंधलका गहराना शुरू हो गया था, वक़्त की ख़ामोशी भी अब टूटने को थी, लेकिन ये हवा अभी भी तुम्हारी तलाश में थी और शायद सदियों तक रहेगी, आज मैं अपने यादों की घाटियों में बहुत गहराई तक उतार गया था, क्यों की खुद मुझे अपनी ही गूँज वहाँ सुनाई दे रही थी, लेकिन यहाँ भी मैं अकेला कहाँ था, तुम भी तो मेरे साथ थी|

शायद यहीं कहीं..........

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